यादों के पन्ने



मुलाकात
                                                                                           - नरेश गौतम

आज की मुलाकात में कुछ अजीब सी बात थी,
वो साथ थी मेरे फिर भी थोड़ी उदास थी।

बीच में मेरी कुछ बकवास पे हंसी तो थी,
पर मैं जनता हूँ वो झूठी थी खुश नहीं थी।

मुझसे और बर्दाश्त नहीं हो रहा था,
पूछा उससे, उसने मुस्कुरा कर छोड़ा था।

उसे लगता है मैं उसे समझता नहीं, उसे जनता नहीं,
सोचती है छुपा लेगी अपना सारा दुख हंसी में कहीं।

पर मैं कैसे समझाऊँ, उसे दुखी नहीं देख सकता,
वो भले ही कुछ न बताए उसका चेहरा है सब कहता।

माँगा है उसका हाथ ज़िन्दगी के लिए, आज कैसे छोड़ूंगा,
मुसीबत मैं है अब, तो अकेले कैसे तड़पने दूंगा।

पकड़ा मैंने हाथ उसका, चाहा कुछ ग़मो को बाँटना था, 
बताया उसने अपना बीता कल और आँखों में उसके पानी था।

वो पानी जो मेरी हर ख़ुशी को ख़त्म करने के लिए काफी था,
उसकी कोई कीमत भी सोचना मेरी औकाद के बाहर था।

उसने कहा मेरा हाथ और साथ दोनों अच्छा लगता है,
मैं उसके ग़मो और आंसूओं को खुद में महसूस करने लगा।

ये सब क्या था क्यों था बताने की ज़रूरत नहीं,
बस दूंगा साथ तेरा हर ग़म मुसीबत में भी।

तू मुझे अपने लायक समझना और अपना हाथ बढ़ा देना, 
जितनी बार तुझे ठोकर लगेगी तेरा हाथ थामूंगा, तुझे गिरने नहीं देना।



बारिश
                                                                                           -नरेश गौतम



मैं इस साल की पहली बारिश से दरख्वास्त कर रहा था ,
अभी ना आए मैं अकेला हूँ , उसका इंतज़ार कर रहा था । 

मौसम तो अच्छा सा हो गया है , हवा भी चल रही है , 
सब एकदम प्यारा सा है पर उसकी कमी खल रही है । 

आज वो नहीं आएगी , दूर कही गयी है ,
अकेला भीग रहा हूँ , पर मुझे मंज़ूर नहीं है । 

ज़िन्दगी की पहली बारिश है जो बंजर कर गयी है ,
उसी छत पे बैठा हूँ बस तेरी आहट महसूस करी है । 

पानी भी हाथ को छू कर तेरी याद दिलाता है ,
बस ये भी नहीं रुक रहा , हाथ से फिसलता जा रहा है । 

यार अगर तू होती तो बारिश भी मीठा पानी लाती है ,
अभी तो ये हवाएं भी बूंदों की आवाज़ के साथ कुछ चिल्लाती है । 

बादलों के पीछे चाँद भी मेरे अकेलेपन पे हंस रहा है ,
बेशक वो भी अकेला है पर तारो का झुण्ड तो उसे देख रहा है । 

ख्वाहिश है के आगे कोई ऐसी बारिश ना हो जाए ,
जब तू चाह के भी अपनी रूह मुझसे ना मिला पाए । 

अगर ख्वाहिश पूरी ना हुई तो फिर तू मुझे उसी छत पे पाएगी ,
बस फर्क इतना होगा के वो बारिश मेरी आँखों का खारापन भी लाएगी । 

ये कोई दिखावा नहीं सच्चाई है ,
हर बूँद में तेरी तस्वीर पाई है ।






हवाएँ
                                                                                         -नरेश गौतम

आज कल हवाएं चलती हैं मौसम मस्त हो जाता है ,
जब वो मुझसे बात करती है दिल खुश हो जाता है ।

वक़्त का थोड़ा तकाज़ा है, थोड़ी कमी है ,
पर हमको तो मिलना है, जैसे भी सही है ।

मेरी गलतिओं के बाद भी वो मुझे अपना रही है ,
वो मुझे कितना चाहती है ये बात बता यही है ।

अब हमारे प्यार की कुछ गवाही भी हैं ,
हमने सबको अपनी कहानी सुनाई भी है ।

हमारी चाहत से किसी को कोई दिक्कत है तो क्या ,
हम सबके लिए तैयार है फिर मौत ही क्या ।

अब तो बस हम साथ हैं एक दूसरे के साये की तरह ,
ज़्यादा होता नहीं बोलने को पर आँखे समझाएं लफ्ज़ो की तरह ।

हम साथ हैं मंदिर मे मांगी दुआओं की तरह ,
प्यार है इतना जैसे आसमां में उड़ानों की तरह ।

लोग जलते हैं, लाते हैं गलतफहमियां कई तरह ,
हमे भरोसा है खुद पे समंदर में दुबे पत्थरों की तरह ।

के कितनी भी लेहरो का ज़ोर लगा लो हिलेंगे नहीं ,
हम भी हैं वैसे , गलतफहमियां टिकेंगी नही ।


उसी समंदर के किनारे उसके साथ बैठा हूँ ,
अब भी हवाएं चल रही हैं और मैं भी खुश हूँ ॥






सज़ा
                                                                                        - नरेश गौतम

आज फिर ज़िंदगी उसी मोड़ पे लौट आई है,
मैं हूँ , लोगों की गालियां हैं और तन्हाई है,
फिर वही ताने बात बात पे सुनाने,
अपनी छोटी ज़िंदगी की शुरुआत ख़त्म पाई है,
मैं हूँ , लोगों की गालियां हैं और तन्हाई है ।

पीछे मुड़ता हूँ लगता है वक़्त रुक गया है,
सीधा चलता हूँ तो दो कदम बाद रास्ता खो गया है,
आगे ना तो ज़िंदगी ना तो साली कोई खाई है,
यूँ तो मर गया पर सांस लेना भी रुस्वाई है,
मैं हूँ , लोगों की गालियां हैं और तन्हाई है ।

कोई हाथ पकड़ के नया रास्ता तो दिखा सकता है,
अनजाने चेहरों में कोई अपना बना सकता है,
पर तक़दीर ने मेरी मंज़िल मौत से मिलवाई है,
तरीका कोई भी हो, अब तो साँसे रुकने को आई है,
मैं हूँ , लोगों की गालियां हैं और तन्हाई है । 

क्या एक गलती की सजा इतनी बड़ी होती है,
इंसान दब जाए तो क्या दुनिया खुश होती है,
आँखों से निकलता अब लाल पानी दिखलाई है,
तड़पना अच्छा नहीं, अब मरने में ही भलाई है,
मैं हूँ , लोगों की गालियां हैं और तन्हाई है ।






दिल का धड़कना
                                                                                           - सैरा ख़ान 
दिल का धड़कना
या
दिल का बहकना,
मेरे इस पागलपन का राज़ क्या होगा?
जब भी तुम मिल जाते हो ,
मेरी यह पागलपन मुझे अपने से दूर ले जाते है...
उस पार तक,
जहाँ से तुम्हारा  प्यार भरी निगाहें भी मुझे कभी वापस नहीं ला सके.....







तेरे बिना
                                                                                                                                  -नरेश  गौतम 

तेरे बिना ज़िन्दगी एक तन्हाई का अहसास है ,
सामने है कुआँ फिर भी मुझे प्यास है !

तेरे बिना हंसने का भी दिल नहीं करता ,
बस तुझे सोचके ,याद करके ये दिन है गुज़रता !

तेरे बिना ज़िन्दगी में एक अजीब सी उदासी है ,
आँखों से गिरते हैं आंसू फिर भी तेरी प्यासी हैं !

तेरे बिना रातो में नींद भी नहीं आती है ,
दिल में है तू फिर भी तेरी याद सताती है !

तेरे बिना खाना भी फीका सा लगता है ,
यही सोचता हूँ ये लम्हा क्यों धीरे गुज़रता है !

तेरे बिना मैं भीड़ में भी अकेला सा लगता हूँ ,
तुझे याद करके तेरा फोटो देखा करता हूँ !

तेरे बिना जैसे रात को चाँद नहीं निकलता है ,
दिन में सूरज भी उखड़ा सा दुनिया रोशन करता है !

तेरे बिना जगते-जगते मैं तेरे ख्वाबो में खो जाता हूँ ,
तेरे कोमल से गालों की किस को याद कर मुस्कुराता हूँ !

तेरे बिना दिल की धड़कन कभी-कभी थम जाती है ,
सांस लेता हूँ तो तेरी खुशबू कही से आती है !

अब इस अकेलेपन को मैं और नहीं सह सकता ,
तेरे बिना तन्हा अब मैं और नहीं रह सकता !







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